दिलवाड़ा जैन मंदिर _ जो राजस्थान राज्य के माउंट आबू में स्थित है, ये एक जैन धर्म को समर्पित मंदिर है।
बाहर
से देखने पर आपको एक साधारण सा मंदिर परिसर लगेगा, पर जैसे जैसे आप इसके
अंदर प्रवेश करेंगे, ये आप को और अचंभित करता चला जायगा। आइए जानते है इस
मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1- इस मंदिर का निर्माण चालुक्य ( सोलंकी) राजा भीमा प्रथम के जैन मंत्री विमल शाह द्वारा कराया गया था, जो कि स्वयं देवी अंबिका के भक्त थे, उन्होंने स्वप्न में देवी द्वारा दी गई आज्ञा के अनुसार प्राचीन जैन मंदिरों के अवशेषों को खोजा तथा निर्माण कराया ।
2 - ये मंदिर प्रांगण जंगलों से घिरी पहाड़ी पर स्थित है, प्रांगण में पांच मंदिर है जो कि अलग अलग तीर्थंकरों को समर्पित है, ये सभी मंदिर एक ही ऊंची चारदीवारी के अन्दर है।
3 - यूं तो पांचों ही मंदिर वास्तुकला के अप्रतिम उदाहरण है किन्तु विमल वसही मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
4 - इन सभी मंदिरों के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है, तथापि इनकी भव्यता का वास्तविक कारण दीवारों पर की गई नक्काशी, उकेरी गई मूर्तियां है।
5 - मंदिर एक आंगन के बीचों बीच स्थित है, जिसके चारों ओर बरामदे है। खम्बो, मेहराबों और मंडप पर की गई नक्काशी दर्शनीय है।
6 - मुख्य द्वार से अंदर जाने पर आप गढ़ मंडप में पहुंचते है, जो कि नौ चौकोर भागो में बांटा गया है, जिसे नवचौकी नाम से जाना जाता है।
7 - मंदिर की छतों पर आपको सैनिकों, नर्तकों, पशुओं के चित्र साथ ही कमल पुष्प तथा जैन कथाओं का सुंदर चित्रण देखने को मिलता है।
8 - ऐसा कहा जाता है कि यहां काम करने वाले कारीगरों को वेतन के रूप में उतने ही भार का सोना दिया जाता था, जितना संगमरमर वह दीवारों से काटते थे। यदि आप कभी भी राजस्थान जाए तो इस मंदिर के दर्शन करना ना भूलें, ये आपको आज से 1000 साल पुराने हमारे गौरव की कहानी सुनाता मिलेगा। जी हां, 11 वी सदी में इस मंदिर का निर्माण किया गया, किन्तु आज भी इसकी चमक और नवलता अतुलनीय है ।
-----जय सनातन
दिलवाड़ा जैन मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. में बनवाया गया था। जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर रुष्ट होकर पाँच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया। किंतु आबूपर्वत के परमार नरेश ने विमलसाह को मंदिर के लिए भूमि देना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने संपूर्ण भूमि को रजतखंडों से ढक दिया। इस प्रकार 56 लाख रुपय में यह ज़मीन ख़रीदी गई थी। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं
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